Shayari, a beautiful musical form of Urdu poetry allows a person to express the deepest feelings through words. It lets you explain sentiments in all their forms through rhythmic words. This blog brings a combination of different styles, moods ,flavours of shayari's written by different poets and shayar's. This is a blog with a combination of various feeling like inspiration ,motivation ,patriotism ,romance ,sadness and much more.
Friday, 30 May 2014
Thursday, 29 May 2014
Saturday, 24 May 2014
Friday, 23 May 2014
Thursday, 22 May 2014
Tuesday, 20 May 2014
Monday, 19 May 2014
Sunday, 18 May 2014
Saturday, 17 May 2014
Thursday, 15 May 2014
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
- रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar)
- रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar)
सदियों की ठंढी, बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
जनता? हां,मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाड़े-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चूस रहे
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली।
जाड़े-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चूस रहे
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली।
जनता? हां, लंबी-बडी जीभ की वही कसम,
"जनता,सचमुच ही, बडी वेदना सहती है।"
"सो ठीक, मगर, आखिर इस पर जनमत क्या है?"
'है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है?"
"जनता,सचमुच ही, बडी वेदना सहती है।"
"सो ठीक, मगर, आखिर इस पर जनमत क्या है?"
'है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है?"
मानो, जनता ही फूल जिसे अहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में
अथवा कोई दुधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में
अथवा कोई दुधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।
लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह,समय में ताव कहां?
वह जिधर चाहती,काल उधर ही मुड़ता है।
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह,समय में ताव कहां?
वह जिधर चाहती,काल उधर ही मुड़ता है।
अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अंधकार
बीता; गवाक्ष अंबर के दहके जाते हैं
यह और नहीं कोई,जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं।
बीता; गवाक्ष अंबर के दहके जाते हैं
यह और नहीं कोई,जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं।
सब से विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
आरती लिये तू किसे ढूंढता है मूरख,
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
Wednesday, 14 May 2014
Tuesday, 13 May 2014
Monday, 12 May 2014
Sunday, 11 May 2014
Aisa
nahi ke hum ko mohabbat nahi mili
Jaisi
chahte thhe hum ko woh ulfat nahi mili
Milne
ko zindagi mein kai humsafar mile
Par un
ki tabiyat se tabiyat nahi mili
Chehron
mein doosron ke tumein dhoondte rahe
Soorat
nahi mili kahin seerat nahi mili
Bahaut
der se aaya tu mere pass kya kahun
Ilfaaz
dhoondne ki bhi mohlat nahi mili
Tujh
ko gila raha ke tuwajjo na di tujhe
Lekan
hamein khud apni mohabbat nahi mili
Her
shakhs zindagi mein badhi der se mila
Koi
bhi cheez waqte zaroorat nahi mili
Hum ko
to teri aadat achhi lagi
Afsos
keh tujh se meri aadat nahi mili ...!
Saturday, 10 May 2014
Thursday, 8 May 2014
यह एकलिंग का आसन है¸
इस पर न किसी का शासन है।
नित सिहक रहा कमलासन है¸
यह सिंहासन सिंहासन है।।1।।
यह सम्मानित अधिराजों से¸
अiर्चत है¸ राज–समाजों से।
इसके पद–रज पोंछे जाते
भूपों के सिर के ताजों से।।2।।
इसकी रक्षा के लिए हुई
कुबार्नी पर कुबार्नी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर
यह सिंहासन अभिमानी है।।3।।
खिलजी–तलवारों के नीचे
थरथरा रहा था अवनी–तल।
वह रत्नसिंह था रत्नसिंह¸
जिसने कर दिया उसे शीतल।।4।।
मेवाड़–भूमि–बलिवेदी पर
होते बलि शिशु रनिवासों के।
गोरा–बादल–रण–कौशल से
उज्ज्वल पन्ने इतिहासों के।।5।।
जिसने जौहर को जन्म दिया
वह वीर पद््मिनी रानी है।
राणा¸ तू इसकी रक्षा कर¸
यह सिंहासन अभिमानी है।।6।।
मूंजा के सिर के शोणित से
जिसके भाले की प्यास बुझी।
हम्मीर वीर वह था जिसकी
असि वैरी–उर कर पार जुझी।।7।।
प्रण किया वीरवर चूड़ा ने
जननी–पद–सेवा करने का।
कुम्भा ने भी व्रत ठान लिया।
रत्नों से अंचल भरने का।।8।।
यह वीर–प्रसविनी वीर–भूमि¸
रजपूती की रजधानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर
यह सिंहासन अभिमानी है।।9।।
जयमल ने जीवन–दान किया।
पत्ता ने अर्पण प्रान किया।
कल्ला ने इसकी रक्षा में
अपना सब कुछ कुबार्न किया।।10।।
सांगा को अस्सी घाव लगे¸
मरहमपट्टी थी आंखों पर।
तो भी उसकी असि बिजली सी
फिर गई छपाछप लाखों पर।।11।।
अब भी करूणा की करूण–कथा
हम सबको याद जबानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर
यह सिंहासन अभिमानी है।।12।।
क्रीड़ा होती हथियारों से¸
होती थी केलि कटारों से।
असि–धार देखने को उंगली
कट जाती थी तलवारों से।।13।।
हल्दी–घाटी का भ्ौरव–पथ
रंग दिया गया था खूनों से।
जननी–पद–अर्चन किया गया
जीवन के विकच प्रसूनों से।।14।।
अब तक उस भीषण घाटी के
कण–कण की चढ़ी जवानी है!
राणा! तू इसकी रक्षा कर¸
यह सिंहासन अभिमानी है।।15।।
भीलों में रण–झंकार अभी¸
लटकी कटि में तलवार अभी।
भोलेपन में ललकार अभी¸
आंखों में हैं अंगार अभी।।16।।
गिरिवर के उन्नत–श्रृंगों पर
तरू के मेवे आहार बने।
इसकी रक्षा के लिए शिखर थे¸
राणा के दरबार बने।।17।।
जावरमाला के गह्वर में
अब भी तो निर्मल पानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर¸
यह सिंहासन अभिमानी है।।18।।
चूंड़ावत ने तन भूषित कर
युवती के सिर की माला से।
खलबली मचा दी मुगलों में¸
अपने भीषणतम भाला से।।19।।
घोड़े को गज पर चढ़ा दिया¸
्'मत मारो्' मुगल–पुकार हुई।
फिर राजसिंह–चूंड़ावत से
अवरंगजेब की हार हुई।।20।।
वह चारूमती रानी थी¸
जिसकी चेरि बनी मुगलानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर¸
यह सिंहासन अभिमानी है।।21।।
कुछ ही दिन बीते फतहसिंह
मेवाड़–देश का शासक था।
वह राणा तेज उपासक था
तेजस्वी था अरि–नाशक था।।22।।
उसके चरणों को चूम लिया
कर लिया समर्चन लाखों ने।
टकटकी लगा उसकी छवि को
देखा कजन की आंखों ने।।23।।
सुनता हूं उस मरदाने की
दिल्ली की अजब कहानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर¸
यह सिंहासन अभिमानी है।।24।।
तुझमें चूंड़ा सा त्याग भरा¸
बापा–कुल का अनुराग भरा।
राणा–प्रताप सा रग–रग में
जननी–सेवा का राग भरा।।25।।
अगणित–उर–शोणित से सिंचित
इस सिंहासन का स्वामी है।
भूपालों का भूपाल अभय
राणा–पथ का तू गामी है।।26।।
दुनिया कुछ कहती है सुन ले¸
यह दुनिया तो दीवानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर¸
यह सिंहासन अभिमानी है।।27।।
इस पर न किसी का शासन है।
नित सिहक रहा कमलासन है¸
यह सिंहासन सिंहासन है।।1।।
यह सम्मानित अधिराजों से¸
अiर्चत है¸ राज–समाजों से।
इसके पद–रज पोंछे जाते
भूपों के सिर के ताजों से।।2।।
इसकी रक्षा के लिए हुई
कुबार्नी पर कुबार्नी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर
यह सिंहासन अभिमानी है।।3।।
खिलजी–तलवारों के नीचे
थरथरा रहा था अवनी–तल।
वह रत्नसिंह था रत्नसिंह¸
जिसने कर दिया उसे शीतल।।4।।
मेवाड़–भूमि–बलिवेदी पर
होते बलि शिशु रनिवासों के।
गोरा–बादल–रण–कौशल से
उज्ज्वल पन्ने इतिहासों के।।5।।
जिसने जौहर को जन्म दिया
वह वीर पद््मिनी रानी है।
राणा¸ तू इसकी रक्षा कर¸
यह सिंहासन अभिमानी है।।6।।
मूंजा के सिर के शोणित से
जिसके भाले की प्यास बुझी।
हम्मीर वीर वह था जिसकी
असि वैरी–उर कर पार जुझी।।7।।
प्रण किया वीरवर चूड़ा ने
जननी–पद–सेवा करने का।
कुम्भा ने भी व्रत ठान लिया।
रत्नों से अंचल भरने का।।8।।
यह वीर–प्रसविनी वीर–भूमि¸
रजपूती की रजधानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर
यह सिंहासन अभिमानी है।।9।।
जयमल ने जीवन–दान किया।
पत्ता ने अर्पण प्रान किया।
कल्ला ने इसकी रक्षा में
अपना सब कुछ कुबार्न किया।।10।।
सांगा को अस्सी घाव लगे¸
मरहमपट्टी थी आंखों पर।
तो भी उसकी असि बिजली सी
फिर गई छपाछप लाखों पर।।11।।
अब भी करूणा की करूण–कथा
हम सबको याद जबानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर
यह सिंहासन अभिमानी है।।12।।
क्रीड़ा होती हथियारों से¸
होती थी केलि कटारों से।
असि–धार देखने को उंगली
कट जाती थी तलवारों से।।13।।
हल्दी–घाटी का भ्ौरव–पथ
रंग दिया गया था खूनों से।
जननी–पद–अर्चन किया गया
जीवन के विकच प्रसूनों से।।14।।
अब तक उस भीषण घाटी के
कण–कण की चढ़ी जवानी है!
राणा! तू इसकी रक्षा कर¸
यह सिंहासन अभिमानी है।।15।।
भीलों में रण–झंकार अभी¸
लटकी कटि में तलवार अभी।
भोलेपन में ललकार अभी¸
आंखों में हैं अंगार अभी।।16।।
गिरिवर के उन्नत–श्रृंगों पर
तरू के मेवे आहार बने।
इसकी रक्षा के लिए शिखर थे¸
राणा के दरबार बने।।17।।
जावरमाला के गह्वर में
अब भी तो निर्मल पानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर¸
यह सिंहासन अभिमानी है।।18।।
चूंड़ावत ने तन भूषित कर
युवती के सिर की माला से।
खलबली मचा दी मुगलों में¸
अपने भीषणतम भाला से।।19।।
घोड़े को गज पर चढ़ा दिया¸
्'मत मारो्' मुगल–पुकार हुई।
फिर राजसिंह–चूंड़ावत से
अवरंगजेब की हार हुई।।20।।
वह चारूमती रानी थी¸
जिसकी चेरि बनी मुगलानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर¸
यह सिंहासन अभिमानी है।।21।।
कुछ ही दिन बीते फतहसिंह
मेवाड़–देश का शासक था।
वह राणा तेज उपासक था
तेजस्वी था अरि–नाशक था।।22।।
उसके चरणों को चूम लिया
कर लिया समर्चन लाखों ने।
टकटकी लगा उसकी छवि को
देखा कजन की आंखों ने।।23।।
सुनता हूं उस मरदाने की
दिल्ली की अजब कहानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर¸
यह सिंहासन अभिमानी है।।24।।
तुझमें चूंड़ा सा त्याग भरा¸
बापा–कुल का अनुराग भरा।
राणा–प्रताप सा रग–रग में
जननी–सेवा का राग भरा।।25।।
अगणित–उर–शोणित से सिंचित
इस सिंहासन का स्वामी है।
भूपालों का भूपाल अभय
राणा–पथ का तू गामी है।।26।।
दुनिया कुछ कहती है सुन ले¸
यह दुनिया तो दीवानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर¸
यह सिंहासन अभिमानी है।।27।।
Wednesday, 7 May 2014
Monday, 5 May 2014
Sunday, 4 May 2014
Saturday, 3 May 2014
wo baat baat pe jee bhar ke bolne wala,
ulajh ke reh gaya doori ko kholne wala.
lo saare shehar ke patthar samet laye hum ,
kaha hai hum ko raat din tolne wala.
hamara dil ki samander tha,usne dekh liya,
bhahut udas huwa jeher golne wala.
kisi ki mojhe-farawa se kha gaya kya maat,
wo ek nazar mein dil ko tatolne wala.
wo aaj phir yahi dohra ke chal dia,
mein bhul ke nahi ab tujh se bolne wala.
ulajh ke reh gaya doori ko kholne wala.
lo saare shehar ke patthar samet laye hum ,
kaha hai hum ko raat din tolne wala.
hamara dil ki samander tha,usne dekh liya,
bhahut udas huwa jeher golne wala.
kisi ki mojhe-farawa se kha gaya kya maat,
wo ek nazar mein dil ko tatolne wala.
wo aaj phir yahi dohra ke chal dia,
mein bhul ke nahi ab tujh se bolne wala.
Thursday, 1 May 2014
Raasta bhi khattin ,doop mein shidhat bhi bhahut thi....
shaye se magar usko mohobbat bhi bhahut thi....
kheme na koi mere musafir ke jalaye,
zakmi tha bhahut phav,yatra bhi bhahut thi........
kuch tho tere mausum hi muhje raas na aye,
aur kuch teri mitti mein bagawat bhi bhahut thi...
iss tarah sath chhodne pe pareshan tho hu lekin,
ab tak tere sath pe hairat bhi bhahut thi....
shaye se magar usko mohobbat bhi bhahut thi....
kheme na koi mere musafir ke jalaye,
zakmi tha bhahut phav,yatra bhi bhahut thi........
kuch tho tere mausum hi muhje raas na aye,
aur kuch teri mitti mein bagawat bhi bhahut thi...
iss tarah sath chhodne pe pareshan tho hu lekin,
ab tak tere sath pe hairat bhi bhahut thi....
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