Thursday 25 September 2014

तू जिसे जर्रा समझकर कर रहा है पायमाल,
देख उस जर्रे के सीने में कहीं दुनिया हो।
जब तक गमे-इन्साँ से 'जिगर' इन्साँ का दिल मामूर नहीं,
जन्नत ही सही दुनिया लेकिन जन्नत से जहन्नुम दूर नहीं।
घर से तो बहुत दूर है मंदिर का रास्ता,
आओ किसी रोते हुए चेहरे को हसाएं।


Monday 22 September 2014

गुलों ने खारों के छेड़ने पर सिवा खामोशी के दम मारा,
शरीफ उलझें अगर किसी से तो फिर शराफत कहाँ रहेगी।
-'शाद' अजीमाबादी
खूने-दिल जाया हो मुझको तो इतनी फिक्र है,

अपने काम आया तो क्या, गैरों के काम आया तो क्या?
खिज्रे-मंजिल से कम नहीं दोस्त,

एक हमदर्द अजनबी का खुलूस।
खाकसारी का है गाफिल बहुत ऊँचा मर्तबा,
यह जमीं वह है जिसमें आसमां कोई नहीं।
-'अलम' मुजफ्फरनगरी

1.खाकसारी - विनम्रता 2.गाफिल - असावधान,बेखबर
3. मर्तबा - पद,दर्ज़ा
कोई हद ही नहीं शायद मुहब्बत के फसाने की,

सुनाता जा रहा है, जिसको जितना याद होता है।

Sunday 31 August 2014

कुछ लोगों से जब तक मुलाकात हुई थी,
मैं भी यह समझा था, खुदा सबसे बड़ा है।
कुछ मेरे बाद और भी आयेंगे काफिले वाले,
कांटे यहाँ रास्ते से हटालूँ तो चैन लूं।
-'तसव्वर'
किसी के काम आए तो आदमी क्या है,
जो अपनी ही फिक्र में गुजरे वह जिन्दगी क्या है?
-'असर' लखनवी